शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

क्या हम उनके लिये कुछ भी नहीं छोड़ेंगे ?


परसों रात कुछ ऐसा अनुभव हुआ जिसको महसूस करके मुझे ऐसा
लगा जैस कि आने वाले समय का पता चल गया हो.
या कह लीजिये कि आने वाले वक़्त कि मुसीबतो से दो दो हाथ हो गये हो .
हुआ यू कि आंधी के कारण जिस जगह पे मै रहता हूँ वहा कि बिजली दोपहर  दो और तीन बजे के बीच चली गई.
इन्तेजार करते करते काफ़ी समय हो गया लेकिन बिजली थी कि आने का नाम ही नही ले रही थी.
शाम के पांच बज गये, फिर छः और नो और फिर दस.
विद्युत् महाराज जी का कुछ भी तो नही पता चल पाया कि आखिर गई कहा. आज तो आँख मिचोनी भी नही कि इसने.
हम भी अपने घुमंतू यंत्र (मोबाइल ) कि रोशनी में खाना खाकर सो गये .
थोड़ी देर बाद का अहसास काफी दुखदाई था. हमारा घुमंतू यंत्र भी बार बार low battery- low battery चिल्ला रहा था ऐसे मानो कोई मरता हुआ आदमी एक एक सांस के लिये चिल्लाता हैं. मुझे प्यास लगी तो मैंने जैसे ही बोत्तल कि तरफ देखा तो हैरान रह गया. उसमे एक बूँद भी पानी नही था. फिर मैंने आसपास अपने मित्रो के पास जाकर देखा तो वहा भी मुझे पानी नही मिल पाया. पानी कि प्यास, ऊपर से गर्मी फिर शरीर भी बेचैन होने लगा.
फिर क्या था मैंने पानी को तलाशने का काम पूरे जोर शोर से शुरू कर दिया.
घर घर गया, मगर ये क्या कही भी पानी नही . मै पानी पानी चिल्ला रहा था मगर पानी था कि मानो बीरबल कि खिचड़ी हो गई. मैंने मटके, फ्रिज और यहाँ तक कि लोगो के घर तक भी छान मारे.
अब तो मारे प्यास के दम निकले जा रहे थे
तभी एक झटके के साथ मेरी आँख खुल गई. समय हुआ था  रात के एक बजकर तीस मिनट. अब जाकर बिजली आई और पंखे ने भी अपनी सेवाए देनी शुरू कर दी. मैंने भगवान् का शुक्र मनाया कि ये एक सपना था. और पास में पड़ी बोत्तल से जी भर पानी पिया. 
अब आप ही सोचिये कि जैसे हम अपने प्राकृतिक स्त्रोत्र का नाजायज दोहन और उनको व्यर्थ बहा रहे हैं तो आने वाली पीढ़ी के लिये तो ये सिर्फ एक सपना ही बनकर रह जायेंगे .  क्या हम उनके लिये कुछ भी नही छोड़ेंगे ?

तो जागो इससे पहले कि काफी देर हो जाये.

13 टिप्‍पणियां:

  1. "तो जागो इससे पहले कि काफी देर हो जाये"

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  2. फिर क्या था मैंने पानी को तलाशने का काम पूरे जोर शोर से शुरू कर दिया.
    घर घर गया, मगर ये क्या कही भी पानी नही . मै पानी पानी चिल्ला रहा था मगर पानी था कि मानो बीरबल कि खिचड़ी हो गई. मैंने मटके, फ्रिज और यहाँ तक कि लोगो के घर तक भी छान मारे.

    Dheere-dheere kuch ainsaa hee waqtaa rahaa hai .

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  3. ब्लाग पर आना सार्थक हुआ
    काबिलेतारीफ़ प्रस्तुति
    आपको बधाई
    सृजन चलता रहे
    साधुवाद...पुनः साधुवाद
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  4. इतना भयानक सपना मत देखो यार रोंगटे खड़े हो गए है.
    भगवान करे हम लोगों को अब भी अक्ल आजाये और आप का यह सपना सपना ही रह जाये

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  5. kaafi accha sandesh diya hai aapne...
    insaan ko jald se jald sudharna hi hoga warna iski bahut badi kimat chukani pad sakti hai!
    accha laga aapka post.
    #ROHIT

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  6. मित्रवर आपका सपना भविष्य में यथार्थ में भी परिवर्तित हो सकता है अगर हम लोग समय रहते ना चेते तो। वैसे इन छोटी छोटी बातों पर हम लोगों का ध्यान कम ही जाता है। अच्छी चीज नोटिस की है आपने।

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  7. @ विचारसुन्य जी मै तो यही चाहता हूँ कि ऐसा सपना ना कभी किसी को आये और ना ही कभी सच हो अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को बचाना हैं तो, आपने ठीक कहा कि अगर हम ध्यान रखेंगे तो ये सपना कभी सच नही हो पायेगा. प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद.

    @ रोहित जी स्वागत हैं आपका, बिलकुल ठीक कहा आपने अगर अभी सुधार नही किया तो भरी कीमत चुकानी पड़ेगी.

    @अमित जी सपना कितना भयानक था शायद आप सोर्फ़ अंदाजा लगा सकते हो, मैंने तो इसे सहन किया हैं.
    मारे प्यास गला सूख गया था. कुछ भी बंटे ना बन रहा था .अगर हम ध्यान रखेंगे तो ये सपना कभी सच नही हो पायेगा. प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद.

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  8. @राजीव कुमार जी, होसला अफजाई के लिये शुक्रिया, आप लोगो के प्रोत्साहन और मार्गदर्शन से हमेशा कोशिस करता रहूँगा कि सृजनात्मक लेख ही लिखता रहूँ.

    @गोदियाल साहब आप लोगो के मार्गदर्शन का हमेशा इच्छुक रहूँगा. और आशा करता हूँ कि आप हमेशा ऐसे ही ब्लॉग पर अपने सानिध्य की बरसात मुझ पर करते रहेंगे. धन्यवाद

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  9. .
    .
    .
    प्रिय संजीव,

    अच्छा आलेख,

    पर घबराओ मत पानी कहीं नहीं जाने वाला धरा से... बस कुछ आबादियाँ एक से दूसरी जगह शिफ्ट होंगी... पानी की ज्यादा मांग के चलते... सदियों से ऐसा हो रहा है... आगे भी होगा... इसमें ज्यादा चिंतित होने की बात नहीं... आदमजात की सामूहिक समझ व ज्ञान के पास हर समस्या का निदान है... बाकी Nature's Equilibrium तो अपना काम करेगा ही !

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  10. @ parveen shah ji kash aisha hi ho
    nature's ka equilibrium hi to kharaab kar rahe h hum aajkal vikas ke naam par.
    yahi to chinta wali baat h

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  11. काबिलेतारीफ़ प्रस्तुति
    आपको बधाई

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