गुरुवार, 6 मई 2010

जाने कहा गए वो दिन ...............







1.    जब गुल्ली डंडा और कंचे क्रिकेट से ज्यादा लोकप्रिय थे...........
2.     जब हमारे आस - पास हमेशा पोसंपा और लुका -छुप्पी खेलने के लिए दोस्त हुआ करते थे .........
3.      जब विक्रम और बेताल , चित्रहार और दादा - दादी की कहानिया हमें बहुत प्यारी होती थी ......
4.         जब पूरे घर में सिर्फ एक टीवी होता था .............
5.           जब बिसलेरी ट्रेन में नही बिकती थी और हम चिंता करते थे की कही पापा पानी की बोत्तल    भरने स्टेशन पे ना   आ जाए ........................



6.         जब होली और दिवाली पे घर में सिर्फ घर के  पकवान बनते थे और माताजी हमारी मदद लिया करती   थी उनको बनवाने में.......
7.           जब पचास पैसे की कीमत कम से कम दस टॉफियों होती थी..........
8.         जब हम आपस में कॉमिक्स और स्टंप की अदला बदली करते थे और चाचा चौधरी और बिल्लू हमारे हीरो होते थे ......
9.       जब मौसम की पहली बरसात का मतलब सिर्फ पानी में भीगना होता था और साथ में कागज की कश्तिया बनायी जाती थी...
10.             जब हम बात बात पे बिना मतलब हँसते रहते थे आज से ज्यादा और आज से ज्यादा खुलकर........
11.          जब हम अपना वर्तमान की ज्यादा मौज लेते थे बिना अपने भविष्य की चिंता किये.........






आज भी वो दिन याद आते हैं .....
क्या आपको भी आते हैं 
कृपया सांझे करे 

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

क्या हम उनके लिये कुछ भी नहीं छोड़ेंगे ?


परसों रात कुछ ऐसा अनुभव हुआ जिसको महसूस करके मुझे ऐसा
लगा जैस कि आने वाले समय का पता चल गया हो.
या कह लीजिये कि आने वाले वक़्त कि मुसीबतो से दो दो हाथ हो गये हो .
हुआ यू कि आंधी के कारण जिस जगह पे मै रहता हूँ वहा कि बिजली दोपहर  दो और तीन बजे के बीच चली गई.
इन्तेजार करते करते काफ़ी समय हो गया लेकिन बिजली थी कि आने का नाम ही नही ले रही थी.
शाम के पांच बज गये, फिर छः और नो और फिर दस.
विद्युत् महाराज जी का कुछ भी तो नही पता चल पाया कि आखिर गई कहा. आज तो आँख मिचोनी भी नही कि इसने.
हम भी अपने घुमंतू यंत्र (मोबाइल ) कि रोशनी में खाना खाकर सो गये .
थोड़ी देर बाद का अहसास काफी दुखदाई था. हमारा घुमंतू यंत्र भी बार बार low battery- low battery चिल्ला रहा था ऐसे मानो कोई मरता हुआ आदमी एक एक सांस के लिये चिल्लाता हैं. मुझे प्यास लगी तो मैंने जैसे ही बोत्तल कि तरफ देखा तो हैरान रह गया. उसमे एक बूँद भी पानी नही था. फिर मैंने आसपास अपने मित्रो के पास जाकर देखा तो वहा भी मुझे पानी नही मिल पाया. पानी कि प्यास, ऊपर से गर्मी फिर शरीर भी बेचैन होने लगा.
फिर क्या था मैंने पानी को तलाशने का काम पूरे जोर शोर से शुरू कर दिया.
घर घर गया, मगर ये क्या कही भी पानी नही . मै पानी पानी चिल्ला रहा था मगर पानी था कि मानो बीरबल कि खिचड़ी हो गई. मैंने मटके, फ्रिज और यहाँ तक कि लोगो के घर तक भी छान मारे.
अब तो मारे प्यास के दम निकले जा रहे थे
तभी एक झटके के साथ मेरी आँख खुल गई. समय हुआ था  रात के एक बजकर तीस मिनट. अब जाकर बिजली आई और पंखे ने भी अपनी सेवाए देनी शुरू कर दी. मैंने भगवान् का शुक्र मनाया कि ये एक सपना था. और पास में पड़ी बोत्तल से जी भर पानी पिया. 
अब आप ही सोचिये कि जैसे हम अपने प्राकृतिक स्त्रोत्र का नाजायज दोहन और उनको व्यर्थ बहा रहे हैं तो आने वाली पीढ़ी के लिये तो ये सिर्फ एक सपना ही बनकर रह जायेंगे .  क्या हम उनके लिये कुछ भी नही छोड़ेंगे ?

तो जागो इससे पहले कि काफी देर हो जाये.

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

टाटा कि नैनो कार के बाद अब नैनो बाइक


जी हा . अब नैनो बाइक का जमाना आ गया हैं  तो आप भी तैयार हो जाइये एक अनोखे anubhav के लिये .
जाहिर सी बात  हैं कि ये सिर्फ एक मजाक हैं और अगर आप के होठों पे थोड़ी सी भी मुस्कान आई तो मै समझूंगा कि नैनो बाइक ने अपना काम कर दिया हैं .
ये हैं इसका लेटेस्ट मॉडल .