सोमवार, 22 मार्च 2010

आज का दौर और बढ़ता तनाव



अनिल पुसाद्कर जी के लेख आतम हत्या को पढ़कर सचमुच मन सोचने को मजबूर हो गया है कि  आखिर क्या क्या कारण हो सकते हैं कि  एक आदमी आतम हत्या के रास्ते को चुनता हैं.
क्यों उसको ऐसा लगने लगता हैं की उसके लिये इस दुनिया में जीना मरने से भी मुश्किल हो गया  हैं.

ये  जानकर हर बार दुःख होता हैं कि फिर आज फलां बच्चे ने suside कर लिया  हैं.
इसके  कारण तो बहुत हैं और मै ये समझता हूँ  की जब तक ये अफरा - तफरी का दौर चलता रहेगा तब तक ये बातें भी  होती ही रहेगी.
हम भारतीय बहुत ही भावुक होते हैं और अपनी भावनाओं को अपने बच्चो  पर थोपते हैं.
होता यू हैं कि  हम खुद जब अपनी जिन्दगी में कुछ  काम नही कर पातें तो अपने बच्चो को आशा के रूप में देखने लगते हैं.
बिना इसकी परवाह किये कि  क्या वह इसके लिए तैयार हैं .और हम अपनी मानसिकता ऐसी बना लेते हैं की हमें किसी  भी कीमत पर वो चीज़े चाहिए .
इसके लिए उनपर हमेशा दबाव बनाते रहते हैं.
आपने अपने आसपास काफी माता- पिता को यह कहते सुना होगा कि  पडोसी के बच्चे की तो फर्स्ट division आई हैं तो तेरी क्यों नही आई. उसने ये मैडल लिया हैं तूने  क्यों नही लिया .
तू उसके जितना क्यों नही पढता हैं.
वो कितना अच्छा हैं और तू कहा भी नही मानता हैं.
ये सब बातें कहने वाला तो आराम से कह जाता हैं यह जाने  बिना की जो सुन रहा है उसके जीवन में ये बातें कितना अंतर पैदा कर देगी.
आज आप किसी  भी विद्यालय  के पास जाकर देखो कि बच्चो के कंधो पे इतना बोझ होता हैं जितना  सायद  उनमे खुद में भी नही होता होगा. 
पहले भी तो अच्छे विद्यार्थी होते थे ऐसी तो बात नही की अब अलग पढाई पढ़ी जा रही हैं .
फिल्म  अभिनेता आमिर खान ने तो अपनी पिछली दोनों फिल्मो में यही  बताने का प्रयास  किया हैं कि  हर बच्चा अपने आप में ख़ास हैं और उसकी किसी दूसरे  से तुलना भी नही की जानी चाहिए.  " तारे जमीन पे" और three idiots इसका एक अच्छा उदाहरण  हैं

मेरे  ख्याल  से इन सबका सबसे अच्छा हल तो ये हैं कि  हम अपने बच्चो को हालात  से जूझना सिखाये . उनमे हार या असफलता का डर ख़त्म  करे .
उनको उनकी हर कौशिश पे ये समझाया जाये की बेटा तुम कौशिश करो और कभी हार या असफलता से मत घबराओ  .
कभी रिजल्ट खराब आये तो उनको विश्वास  में लेकर ये सिखाओ की कोई बात नही हैं जो तू असफल हो गया हैं.
जिन्दगी में सिर्फ यही  अकेला अवसर नही था जो तूने खो दिया है. तू हिम्मत कर और इस हार के कारणों को दूर करते  हुए तब तक कौशिश कर जब तक ये हार जीत में ना बदल जाए .
उसके मन से असफल होने का डर निकालकर अपने प्यार को उसकी ताकत बनाकर तो देखो . फिर देखो कि  वो जीवन के हर संघर्ष और तनाव   को कैसे संजीदगी , उत्साह और आतम  विश्वास  के साथ लेता हैं.
क्योंकि
" दोस्तों समय को तो बीत ही जाना  हैं चाहे हम उस दौरान  हँसे या रोये. जब बीतना ही हैं तो क्यों ना हँस  के बिताये  .
क्योंकि ये ना हो कि  हम अपने अहम् और दुनिया के competition में यह भी भूल जाये कि  ये जीवन अनमोल हैं और हमें इसको ऐसे ही नही गवाना हैं.

ये मेरी एक छोटी सी कौशिश थी जो मेरे जहन में आ रही थी और मैंने काफी ऐसे लोगो को देखा हैं जो इस तरह की सोच रखकर आज खुश हैं 
अनिल जी का धन्यवादी hun जो इस अहम् मुद्दे पे सुरुआत   की.
और आप सभी से भी यही  चाहूँगा कि  अपनी राय या और अच्छे सुझाव इन सब तनाव को कम करने के लिए टिपण्णी के रूप में  नज़र जरुर करोगे.

जीना इसी का नाम हैं
जब तक जियो हँस  के जियो 
संजीव राणा
हिंदुस्तान 

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